भावमुद्रा सागरी...


सागरी लाटां करती मैत्री किनारी,
कोणं वाली सुरकुत्यांना मुखावरी
ओहोटी-भरतीचे चक्र चाले निरंतरी
भाव येता जाता ओसरती चेहऱ्यावरी। 
शिंपल्यात मोती उठून दिसे भारी
पापण्यांची झालर अश्रुंचे मोती धरी। 
हिंदोळ्यां वर डोलते नौका पैलतीरी
अश्रु तरळी नयनी, घरंगळती गालावरी। 
किरणांच्या प्रतीबिंबीत छटा मनोहारी
आनंद, दु:ख, क्रोध, आस दिसे मुखावरी। 
लाल बिंब ते लोपले दूर क्षितिजावरी
ज्योत विझवुनी उडे मनपाखरू दूरवरी। 
शांत लाटा, निश्चल त्या संथ पाण्यावरी
सरल्या सुरकुत्या परत न येण्यापरी। 
अग्निपंख घिरट्या घालतो सागर तीरी
मन पाखराच्या पिंजऱ्याचे पाश सोनेरी। 
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-डॅा नम्रता कुलकर्णी 

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